मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

आलाकमान बन गई है पत्नी


 

व्यंग्य रचना

आलाकमान बन गई है पत्नी

आलाकमान या हाईकमान की चर्चा आजकल गली-मौहल्ले से लेकर चौपालों पर खूब हो रही है। आलाकमान सख्त निर्णय लेने वाले है ये खबर चलते ही बड़े से बड़े नेता की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है,  नेता के चेहरे पर तनाव नजर आने लगता है। आलाकमान शब्द से अब बहुत से लोगों को डर लगता है कई लोगों को रात में आलाकमान के सपने आते है। आलाकमान शब्द आज सुपरहिट फिल्म की तरह लोकप्रिय हो रहा है।

आलाकमान के आगे नेताओं को नतमस्तक होते देख आज कई घरों में पत्नी पति पर आलाकमान की तरह हावी हो रही है। पति कहा जा रहा है,  कितने कमा रहा है, पति के कौन कौन से दोस्त है,  पति ऑफिस में कितना समय बिता रहा है, ऑफिस के बाद पति कहा जा रहा है इत्यादि बातों पर पत्नी आज पति को आलाकमान की तरह मौखिक नोटिस देकर पूछने लगी है।

ऑफिस से लेकर व्यापार आदि में आज बॅास कर्मचारियों पर आलाकमान की तरह हर क्षेत्र में दखलंदाजी करने लगा है। आज ऑफिस के बॅास पर आलाकमान बनने का भूत सवार हो गया है। इसलिए बॅास अब हर छोटी-मोटी बातों पर कर्मचारियों को नोटिस थमाने लगे है। बॅास द्वारा आज आलाकमान की तरह दिखने के चलते कई ऑफिस में आज कर्मचारियों बॅास के बीच रोज रोज की नौकझोंक बहुत बढ़ गई है।

वैसे राजनीतिक पार्टियों में ज्यादातर आलाकमान शब्द का इस्तेमाल होता है। जिन पार्टियों में आतंरिक लोकतंत्र नहीं होता उनमें आलाकमान की ही तूती बोलती है। लेकिन आज आतंरिक लोकतंत्र का दंभ भरने वाली राजनीतिक पार्टियों में भी आलाकमान ही पूरी पार्टी को कब्जे में लिए हुए है।

आज राजनीतिक पाटियों में तो आलाकमान का डर हर तरफ हावी हो गया है। आज पार्टी के आपस के लोग भी एक दूसरे से सार्वजनिक स्थानों पर मिलने से डर रहे है। स्वांग बदल कर एक नेता आज दूसरे नेता से मिलने का प्रयास कर रहा है।

अब आलाकमान से शिकायत करने का डर दिखाकर आमजन नेताजी से कई काम करवाने लगे है। आज मुखर नेता, प्रखर नेता भी किसी मुद्दे पर अपना सार्वजनिक बयान देने से डरने लगा है। आलाकमान जैसे इशारा करता है आज वैसे ही बयान नेताजी सार्वजनिक मंच पर देते है।

आज नौकरशाही भी आलाकमान के आगे ढोक लगाने लगी है। आलाकमान के इशारों पर काबिज होने वाले नौकरशाह आजकल अपने मंत्रियों की भी नहीं सुन रहे है। आम जनता की बात तो नौकरशाह ने आज सुनना ही बंद कर दिया है।

 आज आप कोई से भी पार्टी के कार्यालय में चले जाइए। हर कार्यकर्त्ता अपने आप को आलाकमान का खास बताता है। आलाकमान का खास बताने वाले आज हर तरफ से चांदी कूट रहे है। वे पार्टी नेताओं पर आलाकमान को कह दूंगा की घोस जमाकर अपने मनपसंद काम करवा रहे है।

आज आमजनता की राय लेकर विकास के लिए योजनाकारों ने कितनी भी अच्छी योजना बना ली हो लेकिन वो योजना यदि आलाकमान को पसंद नही आती तो वो कूड़े के ढेर में चली जाती है। आज आलाकमान का सेलून वाला, आलाकमान का ड्रेस डिजाइनर, आलाकमान के बच्चों को पढ़ाने वाला टीचर तथा आलाकमान का डॅाक्टर किसी काम को करवाने में कैबिनेट मंत्रियों से ज्यादा पावर रखते है।

आज आम जनता किसी समस्या पर लाठी गोली खाकर आंदोलन करती रहती है, लेकिन जन समस्या दूर नहीं होती लेकिन विदेश में बैठे आलाकमान के दोस्त तो आज मिनटों में हर तरह का काम प्रशासन से करवा लेते है। इसलिए आज नेतागिरी में अपना भविष्य चमकाने वाले लोग आलाकमान के खास को ढूंढ़ने के लिए इधर-उधर दौड़ लगाते रहते है। लेकिन आलाकमान तो आलाकमान ही होता है। वह कब किसी पर नेता पर हाथ रख कर उसे फर्श से अर्श पर पहुंचा दे यह तो आलाकमान ही बता सकता है। इसलिए अब बहुत से नेता मंदिर से ज्यादा ढोक आलाकमान के दरबार में लगाते है।

यूं तो आलाकमान ही पार्टी में सर्वेसर्वा होता है,  लेकिन आजकल कुछ पार्टी के नेता बाहरी लोगों के समर्थन से आलाकमान को चुनौती देने लगे है। आज राजनीतिक पार्टी के आलाकमान रूपी हीरो के सामने कई विलेन गये है। जब आलाकमान को चुनौती देने की खबरे आने लगी है। कई पति भी अब अपनी आलाकमान बन बैठी पत्नी से तर्क करने लगे है। उन्होंने पत्नी की हर बाद को आंख मूंद कर मानना बंद कर दिया है।

वैसे कहा जाता है कि आलाकमान जब रंग में आता है तो अच्छे-अच्छों के समीकरण बिगाड़ देता है। आलाकमान का डंडा जब चलता है तो वह विरोध करने वालों पर भारी पड़ता है। यूं भी तो आलाकमान के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है फिर कौन उनके खिलाफ बोल सकता है। इसलिए ज्यादातर नेता अपनी जुबान पर हमेशा ताला रखते है। मौन आलाकमान को सबसे अच्छा लगता है।

खैर आलाकमान का ठंडा किस पर चलता है यह तो समय बतायेगा लेकिन अभी तो नेताओं का मौन चल रहा है। फिर भी आलाकमान के सपने तो सभी को रहे है। लगता है आज आलाकमान की हर तरफ हो रही चर्चा के चलते कुछ फिल्म निर्मात जरूर आलाकमान फिल्म बनाने की सोच रहे होगे। देखते है आलाकमान फिल्म जब बनेगी तो आलाकमान का डंडा किस पर चलता है।

वीरेश दत्त माथुर,  119 /126, मानसरोवर,  जयपुर


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